बिहार के गया में एक गांव की पहचान बड़ी अजीब है. जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमोटर की दूरी पर स्थित है अतरी प्रखंड का टेउसा गांव.

इस गांव में रहता है बुजुर्ग महिला सितबिया देवी का परिवार, जिसकी पहचान आस-पास के इलाके में 24 अंगुली वाले परिवार के रूप में बनी हुई है. सितबिया देवी के ससुर सुखाड़ी चौधरी की मां मानो देवी इस परिवार में 24 अंगुली लेकर आई थीं, जिसके बाद पीढ़ी-दर-पीढ़ी जन्म लेने वाले लड़के और लड़कियों के हाथ-पैर मिलाकर 20 की जगह 24 अंगुलियां हैं. अब 24  अंगुलियों वाले सदस्यों की कुल संख्या 20 के पार हो गई है.

मानो देवी का परिवार

शुरू से अब तक की पीढ़ी की बात की जाए तो 24 अंगुली वाली मानो देवी का बेटा सुखाड़ी चौधरी ने भी 24 उंगुलियों के साथ जन्म लिया. सुखाड़़ी चौधरी के बेटे विष्णु चौधरी की भी 24 अंगुली हैं. विष्णु चौधरी की शादी सितबिया देवी से हुई जो इस परिवार की सबसे बुजुर्ग जीवित सदस्य हैं. विष्णु चौधरी और सितबितया देवी के चार बेटों और एक बेटी का जन्म भी 24 अंगुलियों के साथ हुआ  और फिर उन चारों बेटों और बेटियों से पोता-पोती व नाती-नतिनी सभी 24 अंगुली वाले बच्चों का जन्म हुआ.

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इस परिवार के नगीना चौधरी के बेटे हवन के हाथ-पैर में कुल मिलाकर 28 अंगुलियां हैं. बुजुर्ग हो चुकी सितबिया देवी 20 की जगह 24 अंगुलियों को ईश्वर का वरदान मानती हैं. वहीं, दूसरी ओर परिवार के अन्य सदस्य राजू एवं रूबी देवी समेत पड़ोसी बच्चू नारायण चौधरी इसे अभिशाप मानते हैं क्योंकि इस वजह से पीड़ित बच्चे एवं बड़ों को जूते-चप्पल पहनने और लिखने में दिक्कतें होती हैं. इसके साथ ही साथ ही सबसे ज्यादा परेशानी परिवार की लड़कियों की शादी में आती है.

महादलित समाज से आने वाले इस 24 अंगुली वाले परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब है. कोई मजदूरी तो कोई फल बेचकर परिवार की गुजर-बसर कर रहा है. परिवार के कुछ एक सदस्य इस विकार से छुटकारा पाने के लिए डॉक्टर के पास भी गए थे, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी.

क्या कहते हैं डॉक्टर

गया के अनुमंडलीय रेल अस्पताल के डॉक्टर डी के सहाय की मानें तो जीन की वजह से यह बीमारी होती है जो कई पीढ़ियों में अपना असर दिखाती रहती हैं. उनके अनुसार इस बीमारी को खत्म करने का कोई कारगर तरीका हिन्दुस्तान में ईजाद नहीं हो पाया है. पीड़ित परिवार सरकार से भी इलाज के साथ ही आर्थिक सहायता की भी गुहार लगा रहा है.

 

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